तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)
(छंद 15-21)
संजय : (श्लोक 12-27)
फिर युधिष्ठिर ने बजाया शंख अपना अनंतविजयम।
शंखध्वनि का नाद स्वर से हो रहा रण बीच संगम।।
तब नकुल ने शंख अपना भी बजाया है गरज कर।
और फिर सहदेव मणिपुष्पक बजाते हैं निरंतर।।(15)
श्रेष्ठ काशीराज, सात्यिक, द्रुपद, वीर विराट डोले।
वीर अभिमन्यु, शिखंडी, धृष्टद्युम्न के शंख बोले।।
द्रोपदी के पुत्र पाँचों, शंख के मु़ँह खोलते हैं।
इस महास्वर से डरे, कुरु वक्ष सारे डोलते हैं।।(16)
पार्थ ने ले शस्त्र अपने हाथ करने लक्ष्य भेदन।
चक्रधारी सारथी से यह किया झुक कर निवेदन।।
चाहता हूँ देखना हर व्यक्ति जिनसे युद्ध करना।
शत्रु सेना में खड़े हैं कौन ये निज ध्यान धरना।।(17)
देवकीनंदन, तनिक दोनों दलों के बीच चलिये।
रथ बढ़ा कर युद्ध स्थल मध्य हे श्रीकृष्ण धरिये।।
देख तो लूँ भ्रष्ट दुर्योधन भला किनका चहेता।
कौन हैं जो धर्म से ही हैं विमुख रण के प्रणेता।।(18)
कृष्ण रथ को हाँक कर सम्मुख सघन रणक्षेत्र लाये।
सामने से भीष्म, द्रोणाचार्य, सब राजा दिखाये।।
भाई, बांधव, मित्र, नातेदार रिपुदल में खड़े हैं।
और उनमें भी कई हैं पूज्य, जो वय में बड़े हैं।।(19)
देख कर यह दृश्य कुंती पुत्र किंचित डगमगाये।
नैन में आँसू अचानक पीर बनकर छलछलाये।।
व्याप्त करुणा पार्थ के अस्तित्व में होने लगी है।
युद्ध में ज्वालामयी वह आँख अब रोने लगी है।।(20)
अर्जुन : (श्लोक 28-46)
हे महामन्, दृश्य कैसा देखना मुझको पड़ा है।
व्यक्ति हर श्रृद्धेय है जो, आज रिपुदल में खड़ा है।।
ये स्वजन समुदाय मेरा, हैं गहन संबंध जिनसे।
क्या इन्हीं से युद्ध करना, जीतना है युद्ध इनसे? (21)
(क्रमशः)
-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव
विशेष :गीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।